दो घड़ी प्यार जताओगे, बहल जाउंगा!
हाथ थोड़ा सा बढ़ा दो, मैं संभल जाउंगा!
अब मुआफिक सा हुआ जा रहा हूं मैं सबसे,
जिस भी सांचे में मुझे ढालोगे, ढल जाउंगा!
गर भरोसा है तो तुम मुझपे भरोसा रक्खो
मैं कोई वक़्त तो नही जो बदल जाउंगा!
ये बुझी राख भी अंगार लिए बैठी है
जरा-सी फूँक लगाओगे तो जल जाउंगा!
है उजाला अभी इस काली सियाही के तले,
ये रात जैसे ही जायेगी, निकल जाउंगा!
ओर ज़्यादा यहां रुकने का इरादा भी नही,
कल ही आया हूं ज़माने में, मैं कल जाउंगा!
: हिमल पंड्या
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