कोई आया, रोशनी-सी दे गया!
मेरे होठों को हँसी-सी दे गया!
दिल के सूने आसमानों में कोई;
ऐसे निकला, चांदनी-सी दे गया!
लफ्ज़ कुछ़ बिखरे पडे़ थे दरमियां;
अपना मिलना शायरी-सी दे गया!
एसे ढलका आप का आंचल वहां;
कि यहां पे खलभली-सी दे गया!
जाते-जाते मुड़ के देखा आपने;
वो नज़ारा तिश्नगी-सी दे गया!
एक पल की थी हमारी दासताँ;
एक पल एक ज़िन्दगी-सी दे गया!
: हिमल पंड्या
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