थी चंद पलों की वो मुलाक़ात मेरे यार!
कैसे मगर गुज़रेगी अब की रात मेरे यार?
क्या शर्म, क्या लिहाज़, क्या मजबूरी, कैसा डर?
सब कुछ़ बहा के ले गई बरसात मेरे यार!
जो कुछ़ हुआ अब उसका क्यूं अफ़सोस हम करे?
बस में हमारे कब थे वो हालात मेरे यार!
यूँ फासलों से तंग थे इतने कि जब मिले;
होनी ही थी तो हो के रही वो बात मेरे यार!
लफ़्ज़ों ने साथ छोड़ दिया वक़्त देख कर,
कुछ इस तरह बयाँ हुए ज़ज़्बात मेरे यार!
तन्हा कहाँ रहा ये सफ़र जिंदगी का अब?
है साथ तेरी यादों की बारात मेरे यार!
: हिमल पंड्या
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