घर से निकला तो हाज़ी हो चला है,
देख! काफिर नमाज़ी हो चला है;
वक्त वाकई में बूरा है अपना,
हर गुनहगार काज़ी हो चला है!
इश्क का मर्ज़ मुद्दतों से था,
और अब लाईलाज़ी हो चला है;
वो मेरे बस में अब नहीं होता,
दिल जरा बदमिजाज़ी हो चला है;
तेरे जाने पे जो खफ़ा-सा था,
तेरे आने से राज़ी हो चला है.
: हिमल पंड्या
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