Sunday 27 March 2016

ए तो जती ज रहेली ने!?
......पण जता जता य
जगाड़ती गयेली चेतनाने,
बंधावती गयेली हिम्मतने,
जन्मावती गयेली बदलावनी एक आशाने!
......पण हा,
अभागणी हती ए तो!
ना, ए एकली य क्यां?
अभागणी तो हती पेली
न्यायनी देवी य!
आँखे पाटा बांधीने 
पलड़ा एकसरखा तोळवाना वादा अने दावा करती एणे य 
जाते ज फोड़ी नाखवी पड़ी आँखोने!
आखरे ए अभागणीए लाचार अने खिन्न वदने
आपवी ज पड़ी एक नराधमने मुक्ति!
अने फरी एक वार
विंखायेली,
पिंखायेली,
चुंथायेली,
मरवा पडेली मानवताना
गुप्त भागे य 
भोंकायो एक सळियो!!!


: हिमल पंड्या

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