Sunday 27 March 2016

कोइ साथे हता, कोइ सामे हता;
दुश्मनो पण जुदा जुदा नामे हता!

भीड़ पड़ता भरोसो हतो जेमनो,
प्रेमथी ए कही ग्या के 'कामे हता'!

आँखमां झेर, हैये छे नफरत भरी;
आपणे केटला साम सामे हता!

शोधतो, थाकतो, हारतो तूं फरे;
क्यां प्रभु कोइ'दि चार धामे हता!?

जोइ अव्वल आ मंज़िल अने भान थ्युं;
आपणे साव छेल्ला मुकामे हता!

: हिमल पंड्या 

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