Sunday 27 March 2016

आम तो एवु कशुं कारण हतुं नही,
मन ऊपर कंई एटलुं भारण हतुं नही;

जिंदगी फुलवाड़ी सम जिव्यो हतो ए,
जिवतर एनुं ज़रा ये रण हतुं नही;

भीतरे अवसर घणां उजवाया तो ये,
बारणे एना भले तोरण हतुं नही;

आम जुओ तो सतत साथे रह्या ने,
आम जुओ तो कशुं सगपण हतुं नही;

रेलना पाटा समी बे जिंदगीओ,
एकबीजानुं छतां वळगण हतुं नही;

खुदने ओळखवामां ए पाछो पड़ेलो!
केम के एना घरे दर्पण हतुं नही;

मोत एणे एटले व्हालुं कर्यु'तुं;
जिंदगीनुं तो बीजुं मारण हतुं नही!


: हिमल पंड्या "पार्थ"

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