क्षणोने उजवी नाखो, बीजो अवसर नहीं आवे!
अने जो आवशे तो आटलो सुंदर नहीं आवे!
कोइ रस्तो न सूझे तो कोइ रस्तो तुं शोधी ले!
उभा रस्ता वचाळे रही जवाथी घर नहीं आवे!
घणुं थाकी जवायुं एटलुं कहेवामां "चाहुं छुं";
हवे आथी वधारे कांइ होठो पर नहीं आवे!
खुदाने काज आ आतंक, आ जेहाद छोड़ी दो;
के वारंवार आ कहेवाने पयगम्बर नहीं आवे!
तमारी कोइ पण फ़रियाद बहेरा काने अथडाशे;
बराडा पाडशो ने तो य सामो स्वर नहीं आवे;
पिधा'ता एकदा एणे, गळे आवी गयो ए पण;
"जगतना ज़ेर पीवाने हवे शंकर नहीं आवे!"
अहीं बे हाथ जोड़ी बेसवा सिवाय शुं करशे?
हवे ए आ जगतमां आववा खातर नहीं आवे!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
(तरही ग़ज़ल मिसरा : "जगतना ज़ेर पीवाने हवे शंकर नहीं आवे!" - कवि श्री जलन मातरी)
अने जो आवशे तो आटलो सुंदर नहीं आवे!
कोइ रस्तो न सूझे तो कोइ रस्तो तुं शोधी ले!
उभा रस्ता वचाळे रही जवाथी घर नहीं आवे!
घणुं थाकी जवायुं एटलुं कहेवामां "चाहुं छुं";
हवे आथी वधारे कांइ होठो पर नहीं आवे!
खुदाने काज आ आतंक, आ जेहाद छोड़ी दो;
के वारंवार आ कहेवाने पयगम्बर नहीं आवे!
तमारी कोइ पण फ़रियाद बहेरा काने अथडाशे;
बराडा पाडशो ने तो य सामो स्वर नहीं आवे;
पिधा'ता एकदा एणे, गळे आवी गयो ए पण;
"जगतना ज़ेर पीवाने हवे शंकर नहीं आवे!"
अहीं बे हाथ जोड़ी बेसवा सिवाय शुं करशे?
हवे ए आ जगतमां आववा खातर नहीं आवे!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
(तरही ग़ज़ल मिसरा : "जगतना ज़ेर पीवाने हवे शंकर नहीं आवे!" - कवि श्री जलन मातरी)
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