शुं नवो संकल्प लउं हुं आवनारा वर्षमां?
एटलु चाहुं वीते ए अन्यना उत्कर्षमां!
प्रेम, श्रद्धा, लागणी, संवेदना, संस्कारिता;
आटलु भरचक रहे अस्तित्व केरा पर्समां!
एकसरखी तो दशा कायम नथी होवानी पण,
एकसरखु हो वळण तकलीफमां ने हर्षमां;
छो खूटी जातुं बधु जे कांइ छे भेगुं कर्यु,
एक बस हिंमत खूटे नही आकरा संघर्षमां;
जिंदगी हारी चूकेलाने फरी बेठो करूं!
एटली ताकात पामुं शब्दमां ने स्पर्शमां;
कैक तारुं, कैक मारूं पण बधु एनुं ज छे;
आ भरोसो, आ समज बस केळवुं निष्कर्षमां!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
एटलु चाहुं वीते ए अन्यना उत्कर्षमां!
प्रेम, श्रद्धा, लागणी, संवेदना, संस्कारिता;
आटलु भरचक रहे अस्तित्व केरा पर्समां!
एकसरखी तो दशा कायम नथी होवानी पण,
एकसरखु हो वळण तकलीफमां ने हर्षमां;
छो खूटी जातुं बधु जे कांइ छे भेगुं कर्यु,
एक बस हिंमत खूटे नही आकरा संघर्षमां;
जिंदगी हारी चूकेलाने फरी बेठो करूं!
एटली ताकात पामुं शब्दमां ने स्पर्शमां;
कैक तारुं, कैक मारूं पण बधु एनुं ज छे;
आ भरोसो, आ समज बस केळवुं निष्कर्षमां!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
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