जे मानतो नथी ए कदी नही कही शकुं!
साव ज अमस्ती लागणीमां नही वही शकुं!
सहुनो मळे न प्रेम, तो ए चालशे मने;
सहु अवगणे मने तो ए नही सही शकुं!
आ थाय, आ न थाय, आ कराय, ना कराय;
तमने गमे एवी रीते हुं नही रही शकुं!
साचुं जो कहेवा जइश तो मार्यो जइश अने-
खोटुं, मरी जइश तो य नही कही शकुं!
आ बस खुमारी छे जे टकावी रही मने;
हुं ए विना तो क्यांय टकी नही रही शकुं!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
साव ज अमस्ती लागणीमां नही वही शकुं!
सहुनो मळे न प्रेम, तो ए चालशे मने;
सहु अवगणे मने तो ए नही सही शकुं!
आ थाय, आ न थाय, आ कराय, ना कराय;
तमने गमे एवी रीते हुं नही रही शकुं!
साचुं जो कहेवा जइश तो मार्यो जइश अने-
खोटुं, मरी जइश तो य नही कही शकुं!
आ बस खुमारी छे जे टकावी रही मने;
हुं ए विना तो क्यांय टकी नही रही शकुं!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
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