Saturday 26 March 2016

वारवुं पण पड़े,
डारवुं पण पड़े;

मन तणु मांकडु
मारवुं पण पड़े;

अश्रु तो आवशे,
सारवुं पण पड़े;

भीतरे हो अगन,
ठारवुं पण पड़े;

पामवा बाज़ी ने
धारवुं पण पड़े;

जीतवाने कदीक
हारवुं पण पड़े;

: हिमल पंड्या "पार्थ"

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