दर्द ए रीते दिलमां उतारी लीधुं,
ए य हमदर्द छे एम धारी लीधुं;
एकधारी अनिमेष जोई तने,
मन भरायुं छता मनने मारी लीधुं;
स्मित होठोनुं ए भेद खोली गयुं,
कैंक तें पण मनोमन विचारी लीधुं!
छे कविताओ लखनारा पागल बधा,
एक तारण हतुं जे स्वीकारी लीधुं;
: हिमल पंड्या "पार्थ"
ए य हमदर्द छे एम धारी लीधुं;
एकधारी अनिमेष जोई तने,
मन भरायुं छता मनने मारी लीधुं;
स्मित होठोनुं ए भेद खोली गयुं,
कैंक तें पण मनोमन विचारी लीधुं!
छे कविताओ लखनारा पागल बधा,
एक तारण हतुं जे स्वीकारी लीधुं;
: हिमल पंड्या "पार्थ"
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