कां बधु ये मेळवी आबाद था!
कां बधु मूकी अने बरबाद था!
आ गुलामी जातनी सारी नथी,
चाल निकळ ब्हार ने आज़ाद था!
कोई कंई करतु नथी मतलब वगर,
थई शके तो तूं अहीं अपवाद था!
जिंदगी साथे अबोला तोड़वा,
छे जरूरी तूं हवे संवाद था!
हुं कविता प्रेमनी अघरी घणी,
तूं एनो सीधो सरळ अनुवाद था!
एम मारामां थई जा एकरस,
तूं हवे तारा महींथी बाद था!
आम बस डोकुं धूणावी बेस मा,
शेर जो गम्यो ज छे, तो दाद था!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
कां बधु मूकी अने बरबाद था!
आ गुलामी जातनी सारी नथी,
चाल निकळ ब्हार ने आज़ाद था!
कोई कंई करतु नथी मतलब वगर,
थई शके तो तूं अहीं अपवाद था!
जिंदगी साथे अबोला तोड़वा,
छे जरूरी तूं हवे संवाद था!
हुं कविता प्रेमनी अघरी घणी,
तूं एनो सीधो सरळ अनुवाद था!
एम मारामां थई जा एकरस,
तूं हवे तारा महींथी बाद था!
आम बस डोकुं धूणावी बेस मा,
शेर जो गम्यो ज छे, तो दाद था!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
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