Saturday 26 March 2016

आ दशा साचुं कहुं! स्हेजे य परवड़ती नथी,
पीड़ होवानी हवे केमे करी टळती नथी;

एक दरियाने बधी ये वातमां वांधो पड़े,
तंग आवीने नदी एमां हवे भळती नथी;

रेलना पाटा समी बे जिंदगी दोड़ी रही!
जोजनो कापे, परस्पर कोइ दि' अड़ती नथी;

एक इच्छाने खबर नहीं रोग क्यो लागु पड्यो!
छे पथारीवश, हवे स्हेजे य सळवळती नथी;

पांपणोनी पार एक कूवो हतो, डूकी गयो!
आँख सूकाती रही के हुं? खबर पड़ती नथी;

जिववानुं होय त्यारे जिंदगी ओछी पड़े!
ने करुं जो आश मरवानी तो ए फळती नथी.


: हिमल पंड्या "पार्थ" 


(Tarahi Gazal from a line of Kavi Manoj Khandheria)

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