Monday 11 April 2016

Back to 1990s :)


बहोत अच्छा लगा कल रात जो सपने में आये तुम!

मेरी आँखों में आँखे डाल के जब मुश्कुराये तुम!

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महकती रेशमी काली घनी जुल्फों को फैलाए;

शरारत से, नजाकत से, मेरे काँधे पे छाये तुम!

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कंई मुद्दत से कोई भी न चहेरा रास आता था;

हुआ क्या जो अचानक से मेरे इस दिल को भाये तुम!

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उसी दो लफ्ज़ ने बीमार को फिर जिन्दगी दे दी!

यूँ ही धीरे से कानों में ज़रा सा गुनगुनाये तुम!

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बहोत ही प्यार से फिर यार पे जम कर बरस बैठे;

किसी ड़र की वजह से पहले थोडा डगमगाये तुम!

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जमाने की फिकर, परवाह, चिंता छोड़ दी मैंने;

बड़े चुपके से जिस दिन से मेरे दिल में समाये तुम!

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: हिमल पंड्या "पार्थ"

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