Back to 1990s :)
बहोत अच्छा लगा कल रात जो सपने में आये तुम!
मेरी आँखों में आँखे डाल के जब मुश्कुराये तुम!
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महकती रेशमी काली घनी जुल्फों को फैलाए;
शरारत से, नजाकत से, मेरे काँधे पे छाये तुम!
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कंई मुद्दत से कोई भी न चहेरा रास आता था;
हुआ क्या जो अचानक से मेरे इस दिल को भाये तुम!
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उसी दो लफ्ज़ ने बीमार को फिर जिन्दगी दे दी!
यूँ ही धीरे से कानों में ज़रा सा गुनगुनाये तुम!
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बहोत ही प्यार से फिर यार पे जम कर बरस बैठे;
किसी ड़र की वजह से पहले थोडा डगमगाये तुम!
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जमाने की फिकर, परवाह, चिंता छोड़ दी मैंने;
बड़े चुपके से जिस दिन से मेरे दिल में समाये तुम!
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: हिमल पंड्या "पार्थ"
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