Sunday 10 April 2016

संभल जाओ ज़रा सा तुम, अभी कुछ भी नही बिगड़ा!
बदल जाओ ज़रा सा तुम, अभी कुछ भी नही बिगड़ा!
 .. 
ये सच की राह है, थोड़ी परेशानी तो होगी पर,
गुजर जाओ ज़रा सा तुम, अभी कुछ भी नही बिगड़ा!
  ..
फंसाती है हंमेशा से ये दुनिया नेक लोगों को,
निकल जाओ ज़रा सा तुम, अभी कुछ भी नही बिगड़ा!
..
कहां तक भागते रहते फिरोगे हर हकीकत से,
ठहर जाओ जरा सा तुम, अभी कुछ भी नही बिगड़ा!
 ..
खड़ा है आज भी उस मोड़ पर बांहे पसारे वो,
उधर जाओ जरा सा तुम, अभी कुछ भी नही बिगड़ा!
 ..

: हिमल पंड्या

No comments:

Post a Comment