Thursday 7 April 2016

बात जो दिल में थी वो बयाँ कर गया!
तेरा चेहरा तेरी दास्ताँ कह गया!
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मुश्कुराने की कोशिश को नाकाम कर,
एक आंसू सा छलका जरा, बह गया!
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पूछता है ये तन्हा सा, हैरां सा दिल!
तेरे वादों का मौसम कहाँ ढल गया?
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साथ मिल कर मुकम्मल करेंगे उसे,
एक किस्सा अधूरा सा जो रह गया!
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जान से भी दुलारा था एक हमसफ़र;
रूठ कर जाने वो कौन से घर गया?
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एक परवाना जलती शमा देख कर;
खामखाँ बेवजह आग में जल गया!
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ऐसे अपने मुकद्दर से शिक़वा न कर;
आएगा कल वही वक़्त जो कल गया!
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: हिमल पंड्या "पार्थ"

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