Sunday 10 April 2016

दोस्त मिलते है बहोत, यार नही मिल पाता!
हर खता बक्शे वो दिलदार नही मिल पाता!

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हर तरफ एक सा माहौल है खुदगर्जी का,
सब जताते है मगर प्यार नही मिल पाता!

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नेक इन्सान का किरदार निभाने के लिए,
क्या करे एक अदाकार नही मिल पाता!?

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अपने मतलब के लिए सेंकडो जुड़ जाते है,
आदमी एक वफादार नही मिल पाता!

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सरेबाज़ार लूंटी इज्जत-ओ-अस्मत उस की,
बदनसीबी कि गुनहगार नही मिल पाता!

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बुझते रिश्ते है जहां पर भी झांक कर देखो!
एक भी घर अब हवादार नही मिल पाता;

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तेरे मिलने से मुकम्मल ये सफर हो जाता;
तेरे मिलने का सरोकार नही मिल पाता!

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: हिमल पंड्या

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