Wednesday 6 April 2016

इक आह भी अब दिल से निकाली नही जाती,
कुछ पल की उदासी भी सम्हाली नही जाती;
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तेरे बिना ये हाल है कि रोज अब तेरे,
ख़्वाबों के बिना रात ये खाली नहीं जाती;
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कुछ तो अलग ही रंग जमा होगा रात में,
सुबहा के रुख से इस लिए लाली नही जाती;
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ले रख दिया निकाल के दिल हाथ में तेरे,
मुज से तुम्हारी बात अब टाली नही जाती;
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वो बेवफा निकला है तो मजबूर भी होगा!
कुछ बातें सरेआम उछाली नही जाती;
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जाना वो चाहता है तो हाफ़िज़-खुदा कहो,
गैरों पे अपनी मर्जियाँ डाली नही जाती;
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पत्थर के देवता को चढ़ा आज भोग है;
क्या इस लिए गरीब तक थाली नही जाती?
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: हिमल पंड्या "पार्थ"

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