Tuesday 5 April 2016

ऐटले पड़ती मूकी में वातने,
केटलो वागोळवो आघातने?!

वांक दुनियानो य कै ओछो नथी!
क्यां सुधी बस दोष देवो जातने?

केश खुल्ला, मदभरी कैफ़ी नजर,
टाळतो आव्यो छुं आवी घातने!

अश्रु, पीड़ा,ने सतत अवहेलना!
साचवुं क्यां आ बधी सोगातने?

दर्द छे, उम्मीद छे ने जाम छे,
माणवानी होय आवी रातने!

आवकारो आवडतने आपीए,
मापवा ना बेसवुं औकातने;

आ हवा पण एक दि' निकळी जशे;
अंत नक्की होय छे शरूआतने!


: हिमल पंड्या "पार्थ"  
 

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