इक ख़ुशी दूर से नजर आयी,
पास पहुंचे तो आँख भर आयी;
ज़ूम कर रात के पहाड़ो से,
याद की इक नदी उतर आयी;
उस की खातिर में ना कसर रक्खो!
लो उदासी भी आज घर आयी;
मेरी हालत को देख कर के हंसी,
उन के होठों पे मुख़्तसर आयी!
ना है कोई मुकाम, ना मंझिल!
अपने हिस्से में ये डगर आयी;
इस से बेहतर अदब तो क्या होगी?
मौत आयी तो पूछ कर आयी!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
पास पहुंचे तो आँख भर आयी;
ज़ूम कर रात के पहाड़ो से,
याद की इक नदी उतर आयी;
उस की खातिर में ना कसर रक्खो!
लो उदासी भी आज घर आयी;
मेरी हालत को देख कर के हंसी,
उन के होठों पे मुख़्तसर आयी!
ना है कोई मुकाम, ना मंझिल!
अपने हिस्से में ये डगर आयी;
इस से बेहतर अदब तो क्या होगी?
मौत आयी तो पूछ कर आयी!
: हिमल पंड्या "पार्थ"
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