Monday 4 April 2016

साव निरांते स्मरणना हिंचके ज़ूली शको!
तो ज पीड़ाने तमे पळवारमां भूली शको!

एक एवुं जण जगतमां क्यांक होवुं जोइए,
ज्यां बीडेली आंखमां सपनुं थइ खुली शको!

एक-बे हमदर्द, थोड़ा चाहको, पथदर्शको;
आ ज दोलतथी तमे फाली अने फूली शको!

जिद्द जो करवा जशो तो जीववानुं चूकशो;
बहु बधुं पामी जशो जो भूलने भूली शको!

: हिमल पंड्या "पार्थ"

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