Sunday 10 April 2016

महोब्बत में गिरते सँभलते गये,
न छोड़ी मगर राह चलते गये;
 ..
उन्हें शोख आने का था नींद में,
कंई ख़्वाब आँखों में पलते गये;
 ..
अजब इश्क़ करते है परवाने भी!
जली गर शमा, वो भी जलते गये,
 ..
गँवाया था मर्जी से सब कुछ मगर,
बहोत देर तक हाथ मलते गये!
 ..
वहीँ मोड़ था ये, वहीँ रहे गुजर;
जहां से इरादे बदलते गये!
 ..
ग़मों का अँधेरा करीब आ गया;
उम्मीदों के सूरज भी ढलते गये;
 ..
न थामा जिन्हों ने कभी हाथ वो,
मुझे ले के कांधों पे चलते गये;
 ..
: हिमल पंड्या "पार्थ

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