Saturday 9 April 2016

सेंकडो आप के सनम निकले,
चाहने वाले मेरे कम निकले;
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दूर से दिख रही होठों पे हंसी,
पास जाओ तो आँख नम निकले!
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एक दस्तक ख़ुशी ने क्या दे दी!
देखने उस को सारे गम निकले;
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सामने आये अजनबी बन कर,
कैसे पलभर में सब भरम निकले!
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इतनी ख़ामोशी भी बर्दाश्त नही;
बात निकले अगर या दम निकले!
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हो के बेआबरू ग़ालिब की तरहा,
तेरे कूचे से आज हम निकले!
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आज वसियत खुली है शायर की,
एक दवात, एक कलम निकले!
 ..
: हिमल पंड्या "पार्थ"

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