एक ख्वाहिश, एक सपना जिन्दगी!
और है क्या? बस तड़पना जिन्दगी!
दर्द का चुपके से आना, ठहरना;
और फिर हद से गुजरना जिन्दगी!
तेरे ख्वाबों में गुजर जाती थी कल,
आज है रातों का जगना जिन्दगी!
मुश्कुराहट के भी अब मोहताज है;
तब हँसा लेती थी कितना जिन्दगी!
कब तलक चलता रहेगा ये बता;
ये तुम्हारा चाल चलना जिन्दगी?
ठोकरें खाइ तो सीखा हमने भी,
बस है गिरना और संभलना जिन्दगी!
: हिमल पंड्या
२६-९-२०१६
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