Tuesday 25 October 2016

घर से निकला तो हाजी हो चला है,
देख! काफिर नमाजी हो चला है;

वक्त वाकई में बूरा है अपना,
हर गुनहगार काजी हो चला है!

इश्क का मर्ज मुद्दतों से था,
और अब लाईलाजी हो चला है; 

वो मेरे बस में अब नहि होता,
दिल जरा बदमिजाजी हो चला है;

तेरे जाने पे जो खफा़-सा था,
तेरे आने से राजी हो चला है.

: हिमल पंड्या 

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