Saturday 10 September 2016

जीने की कोशिश मे जीना आ जाता है, 
लेकिन फिर भी यार पसीना आ जाता है;

तकदीरों का ताला खोल न पाता कोइ,
कुछ भी कर लो, वक्त कमीना आ जाता है;

मयखाने का रस्ता चाहे अनजाना हो!
दर्द भूलाने नीकलो, पीना आ जाता है;

अपने बारे में अपनों की बातें सुन कर,
अपने होठों को भी सीना आ जाता है;

मैंने माँ के कदमो में सर रक्खा अपना,
उस में मक्का और मदीना आ जाता है;

: हिमल पंड्या
  २०-८-२०१६

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