Saturday 10 September 2016

रोज सुबहा से शाम होती है,
जाने क्यूँ फिर उमर नही जाती!?

वक़्त इतना ना लगा जीने में;
जिंदगी पूछ कर नही जाती!

लो, उदासी ने हाथ थाम लिया!
अब से वो अपने घर नही जाती;

ऐसे बिछड़ा कि आसमाँ पे बसा,
अब वहाँ तक नजर नही जाती!

जाने कैसे कलाम लिखता है,
कुछ तो है जो असर नही जाती!

: हिमल पंड्या

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