रोज सुबहा से शाम होती है,
जाने क्यूँ फिर उमर नही जाती!?
वक़्त इतना ना लगा जीने में;
जिंदगी पूछ कर नही जाती!
लो, उदासी ने हाथ थाम लिया!
अब से वो अपने घर नही जाती;
ऐसे बिछड़ा कि आसमाँ पे बसा,
अब वहाँ तक नजर नही जाती!
जाने कैसे कलाम लिखता है,
कुछ तो है जो असर नही जाती!
: हिमल पंड्या
जाने क्यूँ फिर उमर नही जाती!?
वक़्त इतना ना लगा जीने में;
जिंदगी पूछ कर नही जाती!
लो, उदासी ने हाथ थाम लिया!
अब से वो अपने घर नही जाती;
ऐसे बिछड़ा कि आसमाँ पे बसा,
अब वहाँ तक नजर नही जाती!
जाने कैसे कलाम लिखता है,
कुछ तो है जो असर नही जाती!
: हिमल पंड्या
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