Saturday, 10 September 2016

वादे से अपने आज लो, फिर से मुकर गया!
कह कर निकल गया, मेरा दिल तुज से भर गया!

तकदीर में लिखा था जो रोना तो रो दिये;
उल्फत का कुछ जूनून था सर पे, उतर गया!

साकी! खयाल रखना कि पैमाना भरा हो;
होगा बहोत बूरा जो अब इस का असर गया!

कुछ एसा सबक वक्त ने उस को सिखा दिया;
गैरों में खिल उठा वो, जो अपनों से डर गया!

कागज, कलम, दवात, ये अशआर, वो घूटन;
जो कुछ भी था, उस बेवफा के नाम कर गया!

चहेरे पे जो सुकून कयामत के वक्त था;
लगता था सालों बाद वो फिर अपने घर गया!

: हिमल पंड्या
३०-८-२०१६

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